Tuesday, May 21, 2019

ओपेक पर लगाम कसने चीन-भारत आएंगे साथ?

भारत-चीन 'ऑयल बायर्स क्लब' के गठन की संभावनाएं बन रही हैं जो ग्लोबल एनर्जी मार्केट की गतिविधियों को बदल सकते हैं.
भारत, चीन समेत आठ देशों को ईरान से कच्चे तेल के आयात के लिए मिली छह महीने की छूट दो मई को ख़त्म होने के बाद हाल के दिनों में इस प्रस्ताव पर हलचलें तेज़ हुई हैं.
यदि इस क्लब का गठन हो गया तो दोनों देश एक साथ तेल की क़ीमत के मोलभाव के साथ ही ओपेक के प्रभाव को कम कर सकेंगे. ग़ौरतलब है कि ओपेक दुनिया के 40 फ़ीसदी तेलों को नियंत्रित करता है.
ओपेक के तेल उत्पादन पर लगाए गए प्रतिबंधों से तेल की क़ीमतें बढ़ी हैं, जिससे भारत और चीन दोनों की अर्थव्यवस्था को नुक़सान पहुंचा है. दोनों देशों में पेट्रोलियम उत्पाद मुख्यतः आयात पर ही निर्भर हैं.
लेकिन सवाल उठता है कि क्या ये दोनों एशियाई देश साथ काम करने के लिए एक दूसरे के बीच बने अविश्वास से ऊपर उठ सकेंगे. इतिहास गवाह है कि दोनों देशों ने बढ़ती ऊर्जा की अपनी मांगों को पूरा करने के लिए दुनिया के कई तेल और गैस भंडारों में हिस्सा पाने की होड़ में एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा की है.
'ऑयल बायर्स क्लब' गठित करने का विचार काफ़ी पहले से चल रहा है- सबसे पहले यह 2005 में सामने आया था- लेकिन इस पर बहुत आगे बात नहीं बन सकी.
2005 में, भारत के तत्कालीन तेल मंत्री मणिशंकर अय्यर ने इसका प्रस्ताव दिया था लेकिन यह दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों की पेचीदगी में फंस कर रह गया, जैसा की चीन की राष्ट्रीय दैनिक ग्लोबल टाइम्स ने 2018 में बताया था.
भारत ने 2014 में फिर एक बार इस तरह का क्लब बनाने की कोशिश की लेकिन उस पर भी बातें बहुत आगे नहीं बढ़ीं.
नाम नहीं बताने की शर्त पर एक भारतीय अधिकारी ने 26 अप्रैल को लाइवमिंट वेबसाइट को बताया, "हालांकि, हमने (भारत ने) पहले भी प्रयास किए थे, लेकिन हमने पाया कि ऐसी किसी भी व्यवस्था को बनाने में बहुत सारी खींचतान है क्योंकि कुछ देश हैं जो इस समूह के गठन के ख़िलाफ़ हैं."
एक बार फिर इस प्रयास को बल मिला जब भारत के वर्तमान पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने बीते वर्ष इसे पुनर्जीवित करने का संकेत दिया, यहां तक कि उन्होंने इसमें जापान और दक्षिण कोरिया को शामिल करने का भी सुझाव दिया.
यह उल्लेख करते हुए कि एशियाई देशों को तेल ख़रीदने के लिए ओपेक को लागत से अधिक चुकाना पड़ता है, धर्मेंद्र प्रधान ने अप्रैल 2018 में कहा था कि "आखिर सबसे बड़े उपभोक्ता इसके लिए अधिक पैसे क्यों खर्च करें. आख़िर क्यों एशियन प्रीमियम के नाम पर इन देशों को तेल की अधिक क़ीमतें चुकानी पड़ती हैं. सभी चार प्रमुख एशियाई अर्थव्यवस्थाओं को साथ आना चाहिए."
यह मुद्दा लंबे समय से एशियाई ख़रीदारों के लिए असंतोष का कारण रहा है जो इसे भेदभावपूर्ण कीमत तय करने के रूप में देखते हैं.
तब से, इस तरह की व्यवस्था की लॉजिस्टिक पर काम करने के लिए भारतीय और चीनी अधिकारी एक-दूसरे देशों में कई यात्राएं कर चुके हैं.
मार्च में चीन के नेशनल एनर्जी एडमिनिस्ट्रेशन के उप-प्रमुख ली फेनरॉन्ग के भारत दौरे के बाद दोनों पक्षों ने तेल-गैस पर एक संयुक्त कार्यदल बनाया, जल्द ही इसकी पहली बैठक होने की उम्मीद है.

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