Wednesday, August 29, 2018

健康危机:经济繁荣背后的隐忧

就在一年前,也就是2013年7月,《美国科学院院报》刊载了一篇报告,报告清晰明了的指出了中国空气污染对人体健康的危害:中国淮河以北5亿居民的预期寿命要比华南地区居民短了整整5年。

报告作者来自北大、清华以及耶路撒冷希伯来大学的研究员认为,造成这种结果的原因非常简单:在淮河北部,由于政府之前进行煤炭补贴,燃煤供暖系统成为居民度过严冬主要方式。由此造成的不良结果是:煤炭燃烧导致北方的空气污染水平(通过监测颗粒物得出) 要比南方高出约55%,从而造成北方居民预期寿命缩短。
除此之外,许多其他严峻的事实也与空气污染有关:例如就健康寿命(并不是简单地指人们的寿命)而言,我们可以清楚地看到,空气污染正侵蚀着过去一百年来中国在延长人们的寿命和增进民生福祉方面取得的进步。(这种趋势正在不断扩大)
中国北方地区的居民都知道,目前糟糕的空气质量对他们的健康具有潜在的危害。然而,还有其他的环境危害正威胁着人们的健康。相比于空气污染,它们并不是那么明显或广为人知,但是某些特定地区人群高发的疾病类型却与这些环境危害息息相关:例如,在某些地区,尤其是化 工设施周围地区,通常有癌症村存在;同时还有一些地区,由于电池生产或仅仅因为靠近燃煤发电设备,当地儿童体内铅含量上升。铅中毒可能会损害肝肾,甚至造成永久性智力和发育障碍。7岁以下儿童由于中枢神经系统还未发育成熟,特别容易受到伤害。
中国的卫生统计数据显示,目前中国肺病发病率居世界前列:肺病发病率居世界第二位,肺癌发病率居世界第12位。同时,中国胃癌和肝癌发病率均居世界第三位。糟糕的健康状况很可能与环境污染相关。
随着环境污染日益严重,尤其是人们使用污水灌溉,食品安全也受到严重威胁。正如本期中外对话杂志中何光伟的文章所说,由于矿业和化工行业靠近农田,加之监管不力,湖南省(中国最重要的大米产地)稻米镉污染问题成为一个难以根治的顽疾。最近几年,包括鱼类,肉类和牛奶在内的其他食物也受到了污染,这给消费者敲响了警钟,同时也使中国民众对他们的食品安全问题表现出深刻的担忧。

这些问题伴随着改革开放以来中国经济的显著增长已经积累了至少30年。总有人认为,发展中国家无法坚持落实环保标准,因为对于正在努力脱贫的它们来说,这些标准似乎代价高昂,它们承担不起。但是未能制定并实施良好的环保标准也给这些国家带来巨大的成本——这些成本通常是由公众买单,造成普通民众个人和家庭生活成本增加。
环境的恶化和污染不仅使人类遭受了巨大的苦痛,而且阻碍了社会的发展,增加了修复成 本,同时缩短了人类的寿命,降低了人们的生活质量,人类为此付出了惨重的代价。消除这些 痼疾并不容易,也不是一蹴而就的。在本期中外对话特刊中,作者贺珍怡和王五一在他们的文 章中也表达了这一观点。他们指出,环境健康“众所周知,对任何国家来说都是一个富有挑战 性的政策领域。

这是因为与污染相关的健康问题通常因果关系非常复杂,需要政府在多个层面 做出反应,进行治理。同时,这些问题还能激起社会群体和污染行业之间,以及司法管辖区和 不同地区之间的利益冲突和责任纠纷。”要应对这一挑战,首先必须了解它。我们希望中外对 话本期专刊能够在一定程度上帮助读者更好地了解这一挑战。

Monday, August 27, 2018

नज़रिया: 'दंगों पर नरेंद्र मोदी के ही रास्ते पर हैं राहुल गांधी'

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने जर्मनी और इंग्लैंड के अपने दौरे में कुछ महत्वपूर्ण व्याख्यान दिए. कई मौकों पर प्रश्नोत्तर सत्र में भी वह चमके. स्वदेश के न्यूज़ चैनलों ने सरकार को खुश करते हुए भले ही उनकी आलोचना की या उनकी कथित नासमझी के लिए उनका मज़ाक उड़ाया पर अंतरराष्ट्रीय मीडिया और कूटनीतिक हलकों में उनकी बातों में वैचारिकता और ताज़गी देखी गई.
लेकिन शुक्रवार की रात लंदन में वहां के सांसदों और अन्य गणमान्य लोगों की एक संगोष्ठी में उन्होंने जिस तरह सन् 1984 के सिख विरोधी दंगे या कत्लेआम पर टिप्पणी की, उससे उन पर गंभीर सवाल भी उठे हैं.
राहुल ने माना कि सन् 1984 एक भीषण त्रासदी थी. अनेक निर्दोष लोगों की जानें गईं. इसके बावजूद उन्होंने अपनी पार्टी का जमकर बचाव किया.
आख़िर राहुल की इस बात पर कौन यक़ीन करेगा कि सन् 84 के दंगे में कांग्रेस या उसके स्थानीय नेताओं की कोई संलिप्तता नहीं थी.
ये तो कुछ वैसा ही है जैसे कोई भाजपाई कहे कि गुजरात के दंगे में भाजपाइयों का कोई हाथ ही नहीं था. ऐसे दावों और दलीलों को लोग गंभीरता से नहीं लेते. आख़िर ये दंगे क्या हवा, पानी, पेड़-पौधे या बादलों ने कराए थे?
सन् 1984 के उस भयानक दौर में मैं दिल्ली में रहता था. हमने अपनी आंखों से न केवल सबकुछ देखा बल्कि उस पर लिखा भी. उस वक्त मैं किसी अख़बार से जुड़ा नहीं था.
लेकिन पत्रकारिता शुरू कर चुका था. हां, ये बात सच है कि उस सिख-विरोधी दंगें में सिर्फ़ कांग्रेसी ही नहीं, स्थानीय स्तर के कथित हिंदुत्ववादी और तरह-तरह के असामाजिक तत्व भी शामिल हो गए थे.
कुछ ही समय बाद हमारे इलाके में भी दंगाई भीड़ दाखिल हुई. भीड़ को मैंने अपनी आंखों से देखा. उसमें किसी पार्टी का कोई जाना-पहचाना नेता नहीं था.
पर ये बात तो साफ़ है कि वह भीड़ यूं ही नहीं आ गई थी. उसके पीछे किसी न किसी की योजना ज़रूर रही होगी. वह भीड़ 'ख़ून का बदला ख़ून से लेंगे' के नारे लगा रही थी. ये नारे कहां से आए? इस बीच जो भी तांडव होता रहा, उसे रोकने के लिए पुलिस या अर्धसैनिक बल के जवान भी नहीं दिखे.
दिल्ली के कई दूसरे इलाकों में लोगों ने स्थानीय सियासी नेताओं को दंगाई भीड़ की अगुवाई करते या पीछे से उकसाते देखा था. इस बारे में पीयूसीएल ने तमाम तथ्यों के साथ एक लंबी रिपोर्ट- दोषी कौन पुस्तिकाकार छापा था.
मेरी गली में दंगाई भीड़ का निशाना सरदार जी का घर था. लोगों के हस्तक्षेप से कि इस मकान में और भी लोग रहते हैं, मकान तो किसी तरह बच गया पर सरदार जी का ट्रक दंगाइयों का निशाना बना. वह धू-धू कर जल उठा.
मेरे कमरे में बैठी सरदार जी की पत्नी की आंखों से टप-टप आंसू गिरते रहे. हम कुछ नहीं कर सकते थे. ठीक वैसे ही जैसे गुजरात के कुख्यात दंगों में असंख्य परिजन या पड़ोस के लोग अपने जाने-पहचाने लोगों का मारा जाना या उनकी संपत्तियों का विध्वंस होता देखते रह गए.