Tuesday, August 27, 2019

चर्चा में रहे लोगों से बातचीत पर आधारित साप्ताहिक कार्यक्रम

मुक्तदर ख़ान कहते हैं, "पिछले 40-50 सालों में पाकिस्तान की लाख कोशिशों के बावजूद कश्मीर का मुद्दा कुर्दिस्तान या तिब्बत की तरह अंतरराष्ट्रीय मुद्दा नहीं बन पाया. जबकि उसने संयुक्त राष्ट्र और ओआईसी के फ़ोरम पर जब जब मौका मिला इस मुद्दे को उठाया. लेकिन पहली बार है कि पश्चिम में इस मुद्दे पर मीडिया में काफ़ी कवरेज हो रहा है."
वो कहते हैं, "एक तरह से कह सकते हैं कि अंतरराष्ट्रीयकरण का पाकिस्तान का मुद्दा आगे बढ़ गया है लेकिन वो इसलिए हुआ क्योंकि भारत सरकार ने कश्मीर को लेकर बहुत बड़ा कदम उठाया."
उनके अनुसार, हालांकि पाकिस्तान का कूटनीतिक स्तर पर हार हो रही है क्योंकि पिछले दो दिन में ही दे अरब देशों संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन ने मोदी को सम्मानित किया और फिर ट्रंप ने भी मोदी का समर्थन किया.
वो कहते हैं कि 'सबसे बड़ा संकेत तो ये है कि फ्रांस में जी7 की बैठक के दौरान ट्रंप भी हैं और मोदी भी हैं, जबकि न तो वहां पाकिस्तान है और न इमरान ख़ान.'
मुक्तदर ख़ान का कहना है कि भारत भले ही अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कह रहा है कि आपसी मसलों को द्विपक्षीय तरीके से हल कर लिया जाएगा लेकिन कश्मीर के मसले पर उसने बिल्कुल उलट किया है.
वो कहते हैं, "जम्मू कश्मीर के मामले में बिना वहां की जनता से पूछे, बिना पाकिस्तान से वार्ता किये एकतरफ़ा फैसला भारत ने ले लिया और साथ ही द्वीपक्षीय वार्ता के ज़रिए मामलों को हल करने की बात भी की जा रही है."
उनके अनुसार, अगर भारत जिस तरह कश्मीर में कड़ाई कर रहा है, अगर उसी तरह करता रहा तो दुनिया में फ़लस्तीन की तरह ये मुद्दा भी सिविल सोसायटी उठाने लगे. इसका दूसरा पहलू ये है कि अगर कश्मीरी जनता को लगेगा कि प्रदर्शनों से भारत की बदनामी बढ़ रही है तो वो इसे और बढ़ा देंगे.'
प्रोफ़ेसर मुक्तदर ख़ान कहते हैं कि भारत को चाहिए कि वो कश्मीर में इतने अच्छे हालात बनाए कि वहां के लोग खुशी खुशी भारत के साथ आना चाहें.
लेकिन हाल के दिनों में जो हालात बने हैं उससे लगता है कि इस फैसले की गूंज आने वाले काफी समय तक सुनाई देगी.
अनुच्छेद-370 को निष्प्रभावी बनाने के भारत सरकार के फ़ैसले के तीन सप्ताह बीतने के बाद भी भारत प्रशासित कश्मीर में लोगों को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है.
भारत प्रशासित कश्मीर में जो पाबंदियां लगाई गई हैं उनमें बुनियादी तौर पर तीन बात हैं- इंटरनेट की सहूलियत बंद है, लैंडलाइन कुछ इलाकों में ठीक तौर पर काम कर रहे हैं, लेकिन मोबाइल नेटवर्क पूरी तरह ठप्प है.
इन सबके चलते सबसे बड़ी चुनौती अस्पताल और स्वास्थ्य सुविधाओं को उठानी पड़ रही है.
डॉक्टरों को मुश्किलें पेश आ रही हैं. वे इंटरनेट पर रिसर्च नहीं कर सकते हैं और बाहर के डॉक्टरों से उनका संपर्क कट गया है. ऐसे में वे अपने मरीज़ों का ठीक ढंग से इलाज़ नहीं कर पा रहे हैं.
ऐसे ही एक डॉक्टर हैं डॉक्टर उमर. उमर इलाके में इंटरनेट की सुविधा बंद होने के विरोध में श्रीनगर के लाल चौक पर सोमवार को विरोध प्रदर्शन पर बै
वैसे इंटरनेट बंद होने से इलाके में किसी मरीज की मौत की ख़बर नहीं है.
डॉक्टर उमर बताते हैं, "अभी तो मेरी जानकारी में भी किसी की मौत की ख़बर नहीं है, लेकिन हफ्ते में जिसको तीन डायलिसिस चाहिए अगर उसको एक डायलिसिस मिलेगा तो मरीज़ की मौत हो सकती है."
ठे. वे इंटरनेट सुविधा बहाल करने की गुजारिश के लिए इस प्रदर्शन पर बैठे.
इस दौरान उमर ने बताया, "ये प्रोटेस्ट नहीं है, रिक्वेस्ट है. यह मानवीय संकट बन सकता है. पूरा हेल्थ केयर सिस्टम प्रभावित हो सकता है. प्राइवेट और सरकारी अस्पताल में हम आयुष्मान भारत योजना का लाभ ग़रीब मरीजों को मुफ़्त दे सकते हैं. लेकिन इंटरनेट और फोन लाइन की कनेक्टिविटी नहीं होने के चलते हम मरीजों की मदद नहीं कर पाए हैं. वे अपने ख़र्चे पर दवाईयां ख़रीद रहे हैं, ये हम देख रहे हैं."
हालांकि सरकार दावा कर रही है, कश्मीर में दवाईयों का स्टॉक पूरा है, एंबुलेसें चल रही है, अस्पताल खुले हुए हैं. ऐसे में इंटरनेट बंद होने से स्वास्थ्य सुविधाओं पर क्या असर पड़ रहा है, ये पूछे जाने पर डॉक्टर उमर बताते हैं, "हेल्थ इंश्यूरेंस स्कीम या आयुष्मान भारत इंटरनेट बेस्ड हैं. मरीज अपना स्मार्ट कार्ड लेकर आते हैं. उसे स्वाइप करते हैं, इसके बाद ही हम उन्हें देखते हैं, दवाईयां देते हैं."

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