Monday, August 27, 2018

नज़रिया: 'दंगों पर नरेंद्र मोदी के ही रास्ते पर हैं राहुल गांधी'

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने जर्मनी और इंग्लैंड के अपने दौरे में कुछ महत्वपूर्ण व्याख्यान दिए. कई मौकों पर प्रश्नोत्तर सत्र में भी वह चमके. स्वदेश के न्यूज़ चैनलों ने सरकार को खुश करते हुए भले ही उनकी आलोचना की या उनकी कथित नासमझी के लिए उनका मज़ाक उड़ाया पर अंतरराष्ट्रीय मीडिया और कूटनीतिक हलकों में उनकी बातों में वैचारिकता और ताज़गी देखी गई.
लेकिन शुक्रवार की रात लंदन में वहां के सांसदों और अन्य गणमान्य लोगों की एक संगोष्ठी में उन्होंने जिस तरह सन् 1984 के सिख विरोधी दंगे या कत्लेआम पर टिप्पणी की, उससे उन पर गंभीर सवाल भी उठे हैं.
राहुल ने माना कि सन् 1984 एक भीषण त्रासदी थी. अनेक निर्दोष लोगों की जानें गईं. इसके बावजूद उन्होंने अपनी पार्टी का जमकर बचाव किया.
आख़िर राहुल की इस बात पर कौन यक़ीन करेगा कि सन् 84 के दंगे में कांग्रेस या उसके स्थानीय नेताओं की कोई संलिप्तता नहीं थी.
ये तो कुछ वैसा ही है जैसे कोई भाजपाई कहे कि गुजरात के दंगे में भाजपाइयों का कोई हाथ ही नहीं था. ऐसे दावों और दलीलों को लोग गंभीरता से नहीं लेते. आख़िर ये दंगे क्या हवा, पानी, पेड़-पौधे या बादलों ने कराए थे?
सन् 1984 के उस भयानक दौर में मैं दिल्ली में रहता था. हमने अपनी आंखों से न केवल सबकुछ देखा बल्कि उस पर लिखा भी. उस वक्त मैं किसी अख़बार से जुड़ा नहीं था.
लेकिन पत्रकारिता शुरू कर चुका था. हां, ये बात सच है कि उस सिख-विरोधी दंगें में सिर्फ़ कांग्रेसी ही नहीं, स्थानीय स्तर के कथित हिंदुत्ववादी और तरह-तरह के असामाजिक तत्व भी शामिल हो गए थे.
कुछ ही समय बाद हमारे इलाके में भी दंगाई भीड़ दाखिल हुई. भीड़ को मैंने अपनी आंखों से देखा. उसमें किसी पार्टी का कोई जाना-पहचाना नेता नहीं था.
पर ये बात तो साफ़ है कि वह भीड़ यूं ही नहीं आ गई थी. उसके पीछे किसी न किसी की योजना ज़रूर रही होगी. वह भीड़ 'ख़ून का बदला ख़ून से लेंगे' के नारे लगा रही थी. ये नारे कहां से आए? इस बीच जो भी तांडव होता रहा, उसे रोकने के लिए पुलिस या अर्धसैनिक बल के जवान भी नहीं दिखे.
दिल्ली के कई दूसरे इलाकों में लोगों ने स्थानीय सियासी नेताओं को दंगाई भीड़ की अगुवाई करते या पीछे से उकसाते देखा था. इस बारे में पीयूसीएल ने तमाम तथ्यों के साथ एक लंबी रिपोर्ट- दोषी कौन पुस्तिकाकार छापा था.
मेरी गली में दंगाई भीड़ का निशाना सरदार जी का घर था. लोगों के हस्तक्षेप से कि इस मकान में और भी लोग रहते हैं, मकान तो किसी तरह बच गया पर सरदार जी का ट्रक दंगाइयों का निशाना बना. वह धू-धू कर जल उठा.
मेरे कमरे में बैठी सरदार जी की पत्नी की आंखों से टप-टप आंसू गिरते रहे. हम कुछ नहीं कर सकते थे. ठीक वैसे ही जैसे गुजरात के कुख्यात दंगों में असंख्य परिजन या पड़ोस के लोग अपने जाने-पहचाने लोगों का मारा जाना या उनकी संपत्तियों का विध्वंस होता देखते रह गए.

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